कुछ ऐसे कारवां देखे हैं सैंतालिस में भी मैने
ये गांव भाग रहे हैं अपने वतन में
हम अपने गांव से भागे थे, जब निकले थे वतन को
हमें शरणार्थी कह के वतन ने रख लिया था
शरण दी थी
इन्हें इनकी रियासत की हदों पे रोक देते हैं
शरण देने में ख़तरा है
हमारे आगे पीछे, तब भी एक क़ातिल अजल थी
वो मज़हब पूछती थी
हमारे आगे पीछे, अब भी एक क़ातिल अजल है
ना मज़हब, नाम, ज़ात, कुछ पूछती है
— मार देती है
ख़ुदा जाने. ये बटवारा बड़ा है
या वो बटवारा बड़ा था
– गुलज़ार(ફેસબુક પેજ પરથી સાભાર)
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